इन हज़ारों आवाज़ों की गूँज में, बस एक तेरी आवाज़ को तलाशा करते हैं, मगर कभी मिली नहीं...! इन हज़ारों आवाज़ों की गूँज में, बस एक तेरी आवाज़ को तलाशा करते हैं, मगर कभी मिली...
पहले प्रलय बाद में रचना, स्वतः करे धरती विस्तार...! पहले प्रलय बाद में रचना, स्वतः करे धरती विस्तार...!
कि उसे मैंने पहाड़ और पहाड़ को अपना महबूब कर दिया“ कि उसे मैंने पहाड़ और पहाड़ को अपना महबूब कर दिया“
बोलतीं एक दूसरे से बुनती एक ताल कहानी की लय में। बोलतीं एक दूसरे से बुनती एक ताल कहानी की लय में।