जीवन मंत्र
जीवन मंत्र


कुकुभ छंद
30 मात्रा प्रति चरण
16+14 यति
चरणांत दो गुरु उससे पूर्व दो लघु वर्ण होने चाहिए।
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(१)
बोध नहीं था विलग विरह का!
रखना संयम हिय होगा।
लगा देह में क्या घुन, मेरी,
कौन जन्म का यह भोगा?
तिनका -तिनका बिखर रही है,
न मिलन की आस पिया से।
विरह वहिन है स्व-संताप पर,
निकल रही, आह हिया से!।।
कुहुक कोकिला,रिमझिम बरखा,
मधु सावन नहीं सुहाता!
अपलक बैठी बाट जोहती,
कण- कण उर धीर बँधाता ।।
वृंदावन पथ काँटे बिखरे,
हिय की लतिका कुम्हलाई।
विरह तपन से उपवन सूखे!,
शुष्क हुई भू तरुणाई !।।
सीता-उर्मिल,रुक्मणि- राधा,
मृग, यशोधरा, दृग रीते ।
हेमंत,शिशिर,वसंत,सावन!,
रो- रो रैन- दिवस बीते।।
प्रणय -विरह की पुष्प- वल्लरी,
नयनन के अँसुवन सींचे !
अब तो दर्श दिखा दो कान्हा
बैठे क्यों तुम दृग मींचे ?।।