जीवन के बाद..
जीवन के बाद..
लालिमा होती आच्छादित, प्रकृति विश्राम करती,
जीवन सुप्त हो जाता है, सूर्यास्त के पश्चात ..!
धीरे से तरुणाई जर्र -जर्र जीर्णावस्था ढकती,
सहासा श्वांसो की डोर कटी, अंधकार के बाद..!
किसी आहट की सुगबुगाहटों की चर्चा नहीं होती,
मौत दबे पांव चली आती है, जीवन के बाद ..।
पक्षियों का कलरव बना क्रुंदन जब सांझ आती,
पिंजर में छटपटाता मन जीव मरण के पश्चात..!
उद्गम मार्ग से कल-कल चंचला बहती,
प्रौढ़ावस्था में सिमटी मंद गति के साथ..!
गीता का ज्ञान, जीवन का क्या होगा मृत्यु के बाद ?
मुक्त रहस्य है मृत्यु,आत्मा -शरीर बिछोह के बाद.!
