STORYMIRROR

Neeraj pal

Inspirational

4  

Neeraj pal

Inspirational

जीवन ज्योति।

जीवन ज्योति।

1 min
224

भूल चुका मानव अपने को, वासनाओं की जंजीरों में पड़कर।

 ह्रदय भरा मल- विकारों से ऐसा, घृणा, द्वेष हावी है उस पर।।


 बिखर रहे संबंध निकटतम, विनाशकारी दुष्परिणाम लेकर।

 चले जाते अनजान ड़गर में, अज्ञानता के अंधकार में फंस कर।।


 लगा हुआ परनिंदा में हर पल, खुद के बारे में खबर नहीं है।

 धुन चढ़ी समाज सुधारक की ऐसी, खुद के सुधार की फिक्र नहीं है।।


 अव्यवस्था समाज की इनसे होती, बेमन हँसता पर अखियाँ रोती। 

निज आचरण सुधार न पाता, भूल बैठा मानवता क्या होती।।


 सुधार, सेवा तो स्वाभाविक गुण है, शुद्ध भावना इनकी है होती।

 मान- बढ़ाई इन को नहीं भाती, मानवता के उद्धार में चिंता है रहती।।


 तप कर सोना जैसे कुंदन है बनता, महापुरुषों का एसा जीवन होता। 

पीर पराई सहन न होती, विशुद्ध अंतःकरण उनका है होता।।


 राग- द्वेष मूलक स्वार्थ हैं मिटाते, कर्म-फल में आसक्ति न होती।

" नीरज" लोक संग्रहार्थ सेवा तू कर ले, यह है असली जीवन ज्योती।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational