जीवन चक्र
जीवन चक्र


मेरे घर के झरोखे में,
एक दिन दो मेहमान आये।
मेहमान नहीं थे वो, मुझे अपने से ही लगे।
अब वो मेरे पड़ोसी बनकर ,
जैसे घर का ही हिस्सा बन गये थे।
एक दिन मेरे उन पड़ोसियों के घर से
हल्की – हल्की चीं-चीं की आवाजें आई।
उनके घर नव कोपलें फूटी थी।
मेरे घर में नव जीवन आकार ले रहा था।
दिन भर उनका चहचहाना सुनती।
अच्छा लगता था उनका कलरव।
अचानक एक दिन वो कहीं चले गये।
शायद उन नन्हे बच्चों को पंख आ गये थे।
अब कोई आवाज़ नहीं सुनाई देती,
मेरे घर में सन्नाटा छा गया था।
पिछले दिनों से फिर कुछ
आवाजें आने लगी हैं।
शायद किसी नए पड़ोसी ने
आशियाना बनाया है।
कल से उनके घर से भी वही
चीं –चीं की धीमी आवाज़ आने लगी है ।
मेरा घर फिर आबाद हो गया है।
मैं अनायास ही मुस्कुरा उठी
एक जाता है तो दूसरा आ जाता है ।
शायद यही जीवन चक्र है ।
यूं ही चलता रहता है ।