जीवन चक्र
जीवन चक्र
शैशव से वृद्धावस्था तक
मैं एक सफर पर हूँ
क्रमबद्ध अवस्थाओं मैं बँधा
मैं बालक से बूढ़ा हुआ
घुटनो चलने से लाठी टिकने तक
मैं रिश्तों के बंधन में बँधा
ज़िम्मेदारियों के बोझ तले
किसी अनजानी डगर पर हूँ
शैशव से वृद्धावस्था तक
मैं वाकई एक सफर पर हूँ
प्रेम की तलाश करता
खुटुम खुटुम नए सोपान चढ़ता
कल की कलकल से बेफिक्र
मैं उम्मीदों के बीज बोता
शिशु से किशोर बनता मैं
हवा के झोंके सा प्रखर हूँ
शैशव से वृद्धावस्था तक
मैं वाकई एक सफर पर हूँ
भ्रूण से शिशु...शिशु से किशोर
किशोर से कुमार...कुमार से युवा
युवा से अधेड़...अधेड़ से वृद्ध
नित नए नए आयाम तयकर
हँसते खिलखिलाते मस्ताते कमाते
अंततः ज़िन्दगी से विश्राम पाकर
मोक्ष की राह की ओर मुखर हूँ
शैशव से वृद्धावस्था तक
मैं वाकई एक सफर पर हूँ
आखिर ज़िन्दगी के समुद्र में
राह के हर रोड़े को मिटाते
बढ़ रहा मैं बूँद सा ही सही
चक्रवाती भंवरों में उछाल पाते
हज़ारों भावनाओं मैं गोते लगाते
क्या हुआ गर डगमगाती लहर हूँ
शैशव से वृद्धावस्था तक
मैं वाकई एक सफर पर हूँ
क्यूँकि ये सांसारिक मोह है
आखिर जन्म के बाद मृत्यु
मृत्यु के बाद जन्म मिलना
इस प्राणवायु को...तय है
क्रमबद्ध सरीखा ही जीवन अपना
बदलती विभिन्न अवस्थाओं में
मन के विचारों का बदलना
हर पड़ाव को संयम से पार करते
जब तक जीना तब तक लड़ना
आखिर आदि और अंत के मध्य
जो यौवन की ऊर्जा है...
काफी है हर द्वन्द के लिए
धीरे धीरे ही सही अनवरत
हम सबको यूँ ही है बढ़ना।