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Anita Sharma

Abstract Classics Inspirational

4  

Anita Sharma

Abstract Classics Inspirational

जीवन चक्र

जीवन चक्र

2 mins
260


शैशव से वृद्धावस्था तक

मैं एक सफर पर हूँ

क्रमबद्ध अवस्थाओं मैं बँधा

मैं बालक से बूढ़ा हुआ

घुटनो चलने से लाठी टिकने तक

मैं रिश्तों के बंधन में बँधा

ज़िम्मेदारियों के बोझ तले

किसी अनजानी डगर पर हूँ

शैशव से वृद्धावस्था तक

मैं वाकई एक सफर पर हूँ


प्रेम की तलाश करता

खुटुम खुटुम नए सोपान चढ़ता

कल की कलकल से बेफिक्र

मैं उम्मीदों के बीज बोता

शिशु से किशोर बनता मैं

हवा के झोंके सा प्रखर हूँ 

शैशव से वृद्धावस्था तक

मैं वाकई एक सफर पर हूँ


भ्रूण से शिशु...शिशु से किशोर

किशोर से कुमार...कुमार से युवा

युवा से अधेड़...अधेड़ से वृद्ध

नित नए नए आयाम तयकर

हँसते खिलखिलाते मस्ताते कमाते

अंततः ज़िन्दगी से विश्राम पाकर

मोक्ष की राह की ओर मुखर हूँ

शैशव से वृद्धावस्था तक

मैं वाकई एक सफर पर हूँ


आखिर ज़िन्दगी के समुद्र में 

राह के हर रोड़े को मिटाते

बढ़ रहा मैं बूँद सा ही सही

चक्रवाती भंवरों में उछाल पाते

हज़ारों भावनाओं मैं गोते लगाते

क्या हुआ गर डगमगाती लहर हूँ

शैशव से वृद्धावस्था तक

मैं वाकई एक सफर पर हूँ


क्यूँकि ये सांसारिक मोह है

आखिर जन्म के बाद मृत्यु

मृत्यु के बाद जन्म मिलना

इस प्राणवायु को...तय है

क्रमबद्ध सरीखा ही जीवन अपना

बदलती विभिन्न अवस्थाओं में

मन के विचारों का बदलना



हर पड़ाव को संयम से पार करते

जब तक जीना तब तक लड़ना

आखिर आदि और अंत के मध्य

जो यौवन की ऊर्जा है...

काफी है हर द्वन्द के लिए

धीरे धीरे ही सही अनवरत

हम सबको यूँ ही है बढ़ना।


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