जीवन-भाव
जीवन-भाव
पलकों पर तुझे, यूँ आँसू-सा सजाया।
लबों पर कभी, ख़ामोशी-सा जताया।
आँखें छुपाती रही तुझे राज की तरह।
पर दिल ने तुझे सरगोशियों-सा पाया।
हाँ! मुझमें कहीं अभी भी, तू बाकी है।
डूबते चाँद की तरह कहीं, तू बाकी है।
मेरी हर धड़कन में, एक सुर की तरह।
मेरे विश्राम पलों में अभी, तू बाकी है।
एक कसक-सा बन के, मुझमें पला तू।
एक अश्क-सा बन के, मुझसे जला तू।
क्यों ज़िंदा है मुझमें अभी, वीरानी-सा।
एक टसक-सा बन के, मुझमें मिला तू।
मे
री ही अंतर्मन की, गहन पीड़ा है तू।
मेरी साँसों में बसा, स्पंदन बीड़ा है तू।
दूर होकर मुझसे कभी दूर नहीं हुआ।
मेरी आहों में मिला, वहन क्रीड़ा है तू।
मेरे दर्द की इंतहा, हृदय सम आह तू।
मेरे मन को ढूँढती, सदय सम राह तू।
अनंत के शोध-सा मस्त, निर्बाध रहा।
मेरे अस्तित्व में ही, हिय सम चाह तू।
अनजाना-सा, एहसास बन बाकी है।
मेरे मन में अब विश्वास बन बाकी है।
शून्य को खोजता, विश्राम की तरह।
मेरा जीवन-भाव, आस बन बाकी है।