जीवांत
जीवांत
दोगलेपन का अहसास कराते
जब मुंह से कुछ भी कहते हैं
हिसाब बताते खर्चे गिनाते
उन्हें जीवन से बढ़कर कहते हैं।।
अपने बच्चें से जो ज्यादा मानते
दोषी उन्हें ठहराते हैं
प्रमाणित सही वो खुद को करते
जो दूसरों के प्रभाव में रहते हैं।।
धमकी देते कुछ करने की उनको
जिनकी वो तरक्की की बातें करते हैं
सही-गलत कुछ सोच न पाते
न पढ़ाई में मन लगाते हैं।।
जिस-जिस को भी हम गले लगाएं
चोट उन्हीं से पाते हैं
जिनके कल्याण की बातें करते
वही दोषी हमें बतलाते हैं।।
भलाई की जिनकी बातें करते
विनती लोगों से करते हैं
अपनी नाकामयाबी को देखों कैसे
दूसरों पर ऐसे मढ़ते हैं।।
थाना चौकी करा चुके
हम सम्मान भी अपना खोते हैं
अच्छाई का फल हमकों देते
जो झूठे रिश्ते निभाते हैं।।
अकेला रहे सदा भरी सभा में
सब गुनाह भी मेरा बताते हैं
बुरा न करता कभी किसी का
मेरे क्रोध का लाभ उठाते हैं।।
अपना-अपना करता रहा मैं
पर लोग बुराई को शीश झुकाते हैं
अच्छा इंसान सदा घुट-घुटकर जीता
अच्छे बुरे बन जाते हैं।।
जीवन उनका लगता दांव पर
जो न कथनी-करनी में भेद अपनाते हैं
दूसरों की जो भलाई हैं करते
प्राण वही तो अपने गवाँते हैं।।
कभी भीम राव ने ये सही कहा था
हमेशा धोखा अपने देते हैं
उसी को हमेशा दोषी ठहराते
जो उन्हीं की खातिर लड़ते हैं।।
लॉन से पहले ही टूट चुके हम
न पदोन्नति ही कभी हम पाते हैं
डूबती नैया कौन पार लगाएं
जब भाई-बंधू भी छोड़कर जाते हैं।।
पता नही कितनी सांस बची
चलो ईश्वर भजन कुछ करते हैं
किस-किस को देंगे प्रमाण अच्छाई का
बंद सभी से बातें करते हैं।।