जीने की हसरत है
जीने की हसरत है
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
नहीं सीने में दिल फ़िर भी मुझे जीने की हसरत है,
अजब है ये हुई भी चोर-ए-दिल से ही यूँ चाहत है।
यूँ आँखें मूंद कर सब पर यकीं कर लेती हूँ अक्सर,
मिले धोखा तो कह देती यही तो मेरी किस्मत है।
बर्दाश्त के हूँ क़ाबिल, मुश्किलें यूँ मुझ पे आती हैं,
यक़ीनन हूँ नज़र में मौला की ये उसकी रहमत है।
ये ना समझो कि कोई ग़म नहीं होता है मुझ को भी,
छुपाना दर्द को अब बन गई मेरी भी आदत है।
अदा ना ज़ोया कर पाओ नमाज़ तो कर किसी की मदद,
समझ लेना खुदा की कर ली तूने वो इबादत है।
2nd April / Poem14