जीने की दावत
जीने की दावत


तो अब बची खुची
रही सही कसर तुमने तोड़ दी
अब क्या बचा, कुछ भी नहीं
तो फिर पर्दा गिराए नहीं
पर्दा उठाने का समय है यही
जब लगने लगे कि खत्म सब
तब समझो फिर से शुरू सब
जीवन इसी का नाम है
यही आस, यही उम्मीद
जीने की दावत देती है।