जी हुजूरी
जी हुजूरी
नहीं चाहता हूँ मैं, कोई मेरी करे जी हुजूरी,
मैं भी नहीं करता, किसी की भी जी हुजूरी !
मेहनत करता हूँ, तो फिर क्यूँ करू जी हुजूरी,
जिम्मेदारी निभाता हूँ, तो काहे की जी हुजूरी !
इंसान नहीं शैतान है वो, जिसे भाता जी हुजूरी,
इंसाफ नहीं करता वो, जिसने कराया जी हुजूरी !
लोभ-लालच से परे हूँ, करूँगा नहीं जी हुजूरी,
रूखी-सूखी खाते हैं, कर नहीं सकते जी हुजूरी !
ईमान को भेंट चढ़ा कर, नहीं करते जी हुजूरी,
आत्म सम्मान के रक्षार्थ, कभी नहीं जी हुजूरी !
खुद के स्वार्थ के लिये, नहीं कर सकता जी हुजूरी,
हाँ, ईश्वर और सत्य के सामने ही करूँगा जी हुजूरी !