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SHIVENDRA KISHORE

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SHIVENDRA KISHORE

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चाह नहीं मेरी

चाह नहीं मेरी

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चाह नहीं मेरी की महंगी गाड़ियों में चढ़ूं,

और अपने भाग्य पे इठलाते हुए घुमूं!


चाह नहीं मेरी की बंगले का स्वामी बनूं,

और सारे जगत को ये दिखलाता फिरूं!


चाह नहीं मेरी की ओहदासीन होकर इठलाऊं,

जो प्रभु की इच्छा है उसमें क्यों तिलमिलाऊं!


चाह नहीं मेरी की किसी से बेवजह बहस करूं,

सबकी सोच है जुदा-जुदा क्यों प्रभाव दिखाऊं!


मुझे ऐसी शीतलता प्रदान करना मेरे प्रभु,

की भला ही सोचूं और भला ही करूं!


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