झोपड़ी
झोपड़ी


बड़े- बड़े महलों से तो,
यह झोपड़ी अच्छी है ।
न मिले खाने को भोजन,
पर जीवन में मस्ती है ।
न चिंता संचय करने की,
न चोरी होने की फिक्र है ।
बाढ़ की नहीं इन्हें चिंता,
न डर भूकंप से मरने का है ।
अधिक की इन्हें न लालसा ,
जो मिल गया सो खा लिया ।
गोद में सर रख धरती की,
जीवन अपना गुजार दिया ।
शिक्षा देते यह धनवानों को,
क्यों अपना अमन खोते हो ।
क्या लाए थे तुम धरती पर,
जो जोड़ जोड़ के रखते हो ।
संचय उतना ही अच्छा है,
जितना जीवन में हो उपयोग ।
क्यों गला काटते लोगों का,
मड़ते क्यों अपने सिर दोष ।
घड़ा पाप का भर जाने पर,
अंजाम बुरा उसका होगा ।
समय रहते तुम सीख ले लो,
पछताने से फिर कुछ न होगा ।