झाँसी की रानी - एक वीर मर्दानी
झाँसी की रानी - एक वीर मर्दानी
चमक उठी सन सत्तावन में
वो तलवार पुरानी थी
बुन्देले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो
झाँसी वाली रानी थी I
मोरोपंत की थी वह बेटी
नाना की मुँहबोली बहना
नाम छबीली था उसका
उस अलबेली का क्या कहना
मातृभूमि पर मर मिटने की
उसने मन में ठानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो
झाँसी वाली रानी थी I
तीर, तलवार औ भाले
थे उसके यह खेल - खिलौने
गुलामी से आजादी का सपना
देखे थे उसके नैनों ने
हर बच्चा - बच्चा बालक था उसका
वह जननी स्वरूपिणी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो
झाँसी वाली रानी थी I
लोहा माना था अंग्रेजों ने
उस रानी मर्दानी का
रण में तीर, कमान खड्ग से
लड़ती उस मस्तानी का
लक्ष्मी नाम पर अरि के लिए
साक्षात माँ जगदम्बा मातारानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो
झाँसी वाली रानी थी I
वो भी एक नारी थी
तू भी एक नारी है
फिर क्यों कहलाती तू
अबला बेचारी है
पुरुषों के पुरुषत्व के अहं का
मर्दन करने वाली मर्दानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो
झाँसी वाली रानी थी I
जननी है तू, तू है शक्तिशाली
अपने आन, मान का स्वंरक्षण करनेवाली
ले प्रतिज्ञा मन में दृढ़शाली
अब नहीं जन्मेगी निर्भया
हर नारी होगी अभया बलशाली
हिंद का हर बच्चा - बच्चा बोल उठेगा
खूब लड़ी मर्दानी अब तो
हर घर में है झाँसी वाली रानी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो
झाँसी वाली रानी थी औ रहेगी I
