जहाँ मैं देखता हूँ
जहाँ मैं देखता हूँ
तेरे नाम का रंग लगा मुझे,
और रिश्ते का क्या मैं जहाँ भी देखूँ रंग ही नज़र आता है... दुनिया के बदलते रंग बहुत देखे हैं...
वो पनघट गवाह है जहां तेरी धुन आज भी गुनगुनाती है, पनघट वही है लेकिन घटनाओं और परिस्थितियों ने हमें परिपक्व कर दिया है।
कर्ज में खोया मज़ा कहाँ है? चलो फिर से सोफे पर नान बनकर बैठ जाते हैं...
मैं बच जाऊं तो मुसाफिर बन जाओ, हमारा सफर यूँ ही चलता रहे, मांगते हैं हम भगवान से बस एक ही वर, जिससे हम कभी अधूरी छवि न छोड़े...
एक अधूरी तस्वीर एक टूटे हुए शूल
की तरह दर्द देती है...
पनघट पर 'हँसते हैं' तेरी हिम्मत कहाँ गई, तो होठों पर एक ही जवाब आता है, अगर प्यार ऐसे ही खत्म हो जाता तो 16,000 हजार रानियों की स्वामिनी राधा-राधा जरा जप लेती...
पनघट सो गया और ये दिल भी, ये प्यार एक शख्स से होता है कि जब हम नहीं मिलने वाले होते हैं तो शब्दों से ज्यादा खामोशी में कितनी बातें बयां कर देते हैं...
वानरवन में आज भी रास की धुन गूंजती है, सब कुछ वही है।
तेरी ज़रूरत इस दिल को खा जाती है... परोक्ष रूप से तुझे न पाऊँ तो तेरे एहसास के लिए कुछ भी काफ़ी नहीं...