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Alka Nigam

Abstract Romance

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Alka Nigam

Abstract Romance

जब तूने मेरा वरण किया

जब तूने मेरा वरण किया

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अपने मन के गर्भ गृह में

मेरी प्राणप्रतिष्ठा को,

मन के प्रांगण को तूने बुहारा

पलकों का तोरण सजा दिया।


अपनी देह की वेदी पे

हृदय कलश स्थापित कर,

आम्रपत्र रख निष्ठा के

प्रेम का दीपक जला दिया।


उठती गिरती सांसों में लयबद्ध

जब तूने मेरा नाम लिया,

लगा यूँ जैसे जीवन यज्ञ में

आहवान मेरा हो किया।


गंगा से निर्मल मन से

पवित्रीकरण मेरा था किया।

प्रेम पीयूष मुझ पे बरसा के

मुझ को अभिसिंचित था किया।


अपने प्रेम के पाश की

मौली तूने बाँधी मुझ को।

उदित सूर्य सा रक्त चंदन

माथे पे मेरे सजा दिया।


पषोडशोपचार के जैसे तूने

मेरा सोलह श्रृंगार किया।

सप्तपदी के वचनों से

रिश्ते का संकल्प लिया।


आहुति दीं पुरुषोचित अहम की

वामांगी मुझे बनाने को।

कुमकुम भर के माँग में मेरी

तूने स्विष्टकृतहोम किया।


आरती वंदन सब था किया

पर पूर्णाहुति न दी तूने।

इस वचन के संग के,

प्रेम यज्ञ ये सदा करूँगा

तुम संग मैं।


पूर्णाहुति उस दिन होगी

जिस दिन तजूँगा

देह ये मैं।

जीते जी इस रिश्ते की

पर्णाहूति न कभी

कर पाऊँगा मैं।



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