जब मैं घर पहुँचूं...
जब मैं घर पहुँचूं...


जब मैं घर पहुँचूं, तो कुछ यूं पाऊं...
दौड़कर आते हुये बच्चों की गले में बाहें,
सँवरकर बैठी बीवी की प्यार भरी निगाहें,
देरी से आने पर माँ की रोज की डांट खाऊं,
जब मैं घर पहुँचूं, तो कुछ यूं पाऊं।
घर के कोने कोने में संगीत के सुर हों,
कदम रखते ही सारी चिन्तायें फुर हों,
गुस्से में लाल पिताजी को बार बार मनाऊं,
जब मैं घर पहुँचूं, तो कुछ यूं पाऊं।
परिवार में हर ओर खुशहाली हो,
खाने की सबकी एक ही थाली हो,
सबसे पहला निवाला माँ को खिलाऊं,
जब मैं घर पहुँचूं, तो कुछ यूं पाऊं।
बिन परवाह चैन से बिस्तर पर लेटूं,
चमकते सितारों की महफिल देखूं,
बच्चों को परियों की कहानी सुनाऊं,
जब मैं घर पहुँचूं तो कुछ यूँ पाऊं।