जब-जब आती हरियाली अमावस
जब-जब आती हरियाली अमावस
जब-जब आती हरियाली अमावस है
हम सबके हृदय में घोल देती रस है
प्रकृति मां ओढ़ती इस दिन, हरी चुनर
हृदय में आंनद समाता है, इस कदर
आदमी भूल जाता, गम के हरपल है
प्राकृतिक दृश्य की होती है, भरमार
मन, खिंचतीं प्राकृतिक छटाएँ बरबस
जब-जब आती है, हरियाली अमावस
मालपुए, पकौड़ी याद की देती दस्तक
झरनों की कलकल, पर्वतों के दृश्य
मन को देते, अथाह सुकून के क्षण
हृदय भीतर उमड़ता है, ऐसे पारावार,
जैसे कहीं सितारों का हुआ अविष्कार
मन मयूर को मिल जाते पंख अपार
प्रकृति मां का जब होता सुंदर श्रृंगार
इस दिन प्रकृति मां बनती सुंदर दुल्हन
जब-जब आती है, हरियाली अमावस
हम सबके हृदय में घोल देती है, रस
आज के दिन का सब लुत्फ उठाओ,
प्रकृति मां में हर सवाल का है, हल
जब हर तरफ से आप निराश हो,
जीने की नही बची कोई आस हो,
प्रकृति की गोद मे जाकर सो जाओ,
प्रकृति में मिलेगा मां सा अहसास है
हर गम, चिंता का प्रकृति में ईलाज है
हरियाली अमावस में प्रकृति सांस है
धर्म से जोड़कर बनाया इसे खास है
ताकि हम प्रकृति की महत्ता समझे,
क्योंकि जो रहता प्रकृति के पास है,
उसका होता सर्वांगीण विकास है,
जब-जब आती है, हरियाली अमावस
हम सबके हृदय में घोल देती है, रस
इसका मजा ही अलग होता है, बस
इसमें समाया स्वर्ग सुख खास है।
