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shaily Tripathi

Tragedy Fantasy Thriller

4  

shaily Tripathi

Tragedy Fantasy Thriller

जादू का सच

जादू का सच

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जिन्दगी न जाने कैसे मोड़ पर अड़ी थी 

 हर कहीं, हर तरफ़ मुसीबतें खड़ी थीं 

रोज़गार डूब गया, अब मैं बेकार था 

 माँ भी बीमार थी, बेटा बीमार था, 

थी नहीं आमदनी, सिर पर उधार था 

बीवी और बच्चों में गुस्सा-ग़ुबार था 


आह! मुझे थामने को कड़ी मिल जाती 

काश! कोई जादू की, छड़ी मिल जाती 

उसको घुमा कर जब मंत्र बुदबुदाता 

बेशुमार दौलत का ढेर लग जाता 

दुर्भाग्य पर अपने मैं कुढ़ रहा था 

गहरी निराशा से सिर दुख रहा था, 

 

भाग्य को पलटना क्या सम्भव नहीं है

चमत्कार, मैजिक या जादू नहीं है? 

कितने विचार आज मन मथ रहे 

दिवा-स्वप्नलोक में मुझे ले गये थे 

सुन्दर बागीचा था, जिसमें गिरा था 

इस माया-नगरी में, मैं ही अकेला था 

 टोपी लगायी थी, काला लबादा था, 

जादुई करिश्मा यहाँ चल रहा था 


देगची चढ़ा करके, काढ़ा पकाया था 

बीमार अम्मा को प्यार से पिलाया था 

चमत्कार यह था, माँ ठीक हो गयी थी 

प्यार भरी आँखों से मुझे देखती थी,

खुशियों से झूम मैंने माँ को उठाया था

कमरे में थोड़ा सा उसको घुमाया था... 

धीमी कराहटों से नींद खुल गयी थी 

सामने पलंग पर माँ दर्द से तड़पती थी 


वापस मैं ग़मगीन, दुःख से घिरा था 

माया नहीं, कोई जादू नहीं था 

क़िस्मत हमारी हमारे ही हाथ है 

ये जादू-टोने कहानी की बात हैं।


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