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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Abstract

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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

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इतने आततायी

इतने आततायी

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इतने आततायी क्यूँ बनो 

क्या ये तुम्हारे सगे नहीं हैँ 

इतने बेहयायी क्यूँ करो 

क्या ये सच् मे ठगे नहीं हैं !


समन्दर भी रो देता है 

जब तूफान आता है 

मंज़र भी खो जाता है 

जब अवाम आता है !


कोई भी शाश्वत नहीं है 

गुरूर अच्छा है क्या 

इतनी आफत नहीं तो 

मगरूर अच्छा है क्या 


ठानना है तो सहमति ठानो 

टालना है तो कुमती टालो 

नाश तो होना ही था और 

हो सके तो बिपत्ती टालो !!


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