इतिहास लिखूं
इतिहास लिखूं
इस धरातल का इतिहास लिखूं
गुलाम लिखूं या आजाद लिखूं
लिखूं फिर गुलामी की जंजीर
या शिवाजी की शमशीर लिखूं।
मैं अयोध्या का राम लिखूं
पिता के वचनों पर त्याग लिखूं
मैं पुरुषों में पुरुषोत्तम लिखूं।
फिर 14 वर्ष का वनवास लिखूं
मैं शबरी के झूठे बेर लिखूं
या पत्थर पर राम लिखूं।
महाभारत का नाम लिखूं
मैं पांडवों का अज्ञात लिखूं
फिर भीष्मा की प्रतिज्ञा लिखूं
मैं गांडीव की हुंकार लिखूं
मैं लिखूं भीम का बाहुबल
मैं गदाधारी बलवान लिखूं
या योगीराज भगवान लिखूं।
भारत का गौरव लिखूं
मैं वीर शौर्य गाथा लिखूं
फिर भारत को महान लिखूं
मैं भारत का किसान लिखूं
मैं लिखूं तलवारों पर रक्त
मैं क्षत्रियों का वो वक्त लिखूं
मैं हवेलियों की पुकार लिखूं
या युद्ध की टंकार लिखूं
मैंने फिर कलम से मां लिखा है
फिर मैंने हिन्दुस्ता लिखा है
और लिखा है उसी कलम से
मैंने इंकलाब
फिर मैंने रंग बसंती लिखा है।
लिखा है रोया नहीं फांसी पे
मैं अकेला नहीं था रण में
कभी आजाद कभी बिस्मिल
फिर मैंने सुखदेव राजगुरु लिखा है।
लिखा है लाला लाजपत राय ने लाठी खाई पर शब्द नहीं बदला
लिखा कि सांडर्स हत्यारा था
फिर मैंने भगत सिंह का बदला लिखा है।
लिखते लिखते लिख दिया
रंग बसंती चोला है
असेंबली में बम फोड़ने
वाला भगत सिंह का डोला है
फांसी पर भी हंस दे
फिर रंग बसंती बोला है
मैं छल नहीं मैं कपट नहीं
मैं झूठ नहीं मैं द्वेष नहीं
मैं ऋषि मुनियों का त्याग हूं।
मैं निंदा नहीं मैं श्राप नहीं
मैं छल के बिल्कुल पास नहीं
मैं वेदों का राग हूं।
मैं अधर्म नहीं मैं भरम नहीं
मैं भगवान नहीं मैं अवतार नहीं
मैं साधु की कंठमाला हूं
मैं सरफिरा लेखक सनातनी वाला हूं।
मैं शब्दों की रचनाएं हूं
मैं भगवा की परछाई हूं
मेरी कलम जब लिखती है
झुकती नहीं किसी दरबारों में
ये सरफिरे की कलम है बिकती नहीं बाजारों में।
मैंने कलम से ओम लिखा वेद लिखा फिर यज्ञ लिखा
भगवा लिखा है बारंबार
जो भी लिखा है सत्य लिखा
फिर भारत मां का नाम लिखा।
