इश्क़ में मत पूछो मेरा हाल
इश्क़ में मत पूछो मेरा हाल
इश्क़ नें मत पूछो मेरा हाल कैसा है
न चुप रह सकें न कह ही पाएँ
कम्बख्त ये ख़याल कैसा है ?
उनकी हर बात होती है सर आँखों पर
फिर क्यों वो पूछते नहीं कभी मेरा
हाल
कम्बख्त ये जाल कैसा है ?
झुकाकर पलकें कभी हौले से कहते हैं
"क्या हुआ "
की खुद जवाब देकर पूछते हैं
कहो ये सवाल कैसा है ?
धड़कन रुक सी जाती है
उनके बस मुस्कुराने से
मोहब्बत कमाल ये कैसा है ?
जो तुम समझ गए तो कर न पाओगे
और हो गया तो समझ न पाओगे
इश्क़ ख़्याल, कमाल, जाल और
बवाल ये कैसा है ...
इश्क़ नें मत पूछो मेरा हाल कैसा है
न चुप रह सकें न कह ही पाएँ
कम्बख्त ये ख़याल कैसा है ?

