माँ-बाप कहीं नहीं जाते
माँ-बाप कहीं नहीं जाते
मेरे बच्चों को कभी देख नहीं पाए वो
अपने बच्चों में मैं रोज़ उन्हें देखता हूँ
अपने पिता के सारे निशानों को
अपने बच्चों में बड़ा होते देखता हूँ।
मेरी बेटी की नाक पर, उनका ही गुस्सा है
मासूमियत बेटे की, उनकी विरासत का हिस्सा है
मुझे लाड़ भी तो, वो उनके जैसा ही करते हैं
बच्चे मेरे, अपने दादा जैसे,
मुझे बड़ा कहाँ होने देते हैं।
पुकारते हैं, मुझे वो उनके ही अंदाज़ से
उठने, बैठने भी लगे हैं उनके जैसे, आज से
उनकी मुस्कुराहटों में, उनकी ही हँसी है
उनकी शख्सियत, आदतों में बच्चों के बसी हैं।
उनको हमेशा अपने बहुत करीब महसूस करता हूँ
जब बच्चों को, गोद में अपने कस के जकड़ता हूँ
जाते नही कहीं, माँ-बाप अपने बच्चों को छोड़कर
उनका बच्चा मैं, अपने बच्चों को देखकर सोचता हूँ !