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Vivek Juyal

Drama

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Vivek Juyal

Drama

एक घर

एक घर

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एक वादा करना हैं तुमसे,

एक घर बनाना हैं अपना,

उस घर में,

ज्यादा से ज्यादा,

तीन-चार कमरें होंगें,

ज़ाहिर हैं, एक मेरा,

एक माँ का,

एक छोटे भाई का,

और एक मेहमानों का,

जो कभी वक़्त पे,

तो कभी..

बेवक़्त आ जाए घर पे !

माँ के कमरें में,

माँ की चीज़ें,

भाई के कमरें में,

भाई की चीज़ें,

मेहमान वाले कमरें में,

कुछ ऐसी चीज़ें होंगी,

जिनकी जरूरते,

महीनों में एक बार,

पड़ती होंगी हमें,

या यूँ कह लो,

आधी जरूरते,

आधा कबाड़,

मेहमान वाले कमरें में,

रखा जाएगा आराम से !


और मेरे कमरें में,

कुछ चीज़ें मेरी,

जरूरतों की होंगी,

जैसे मेरे कपड़े,

मेरी किताबें,

मेरी क़लम और तुम्हारी यादें,

और हाँ,

मेरे कमरें में..आने की इज़ाजत,

मेरी माँ को भी नहीं होगी,

क्योंकि मैं नहीं चाहता,

उन्हें एहसास हों,

मेरा हँसता खेलता बच्चा,

रोता बहुत हैं रातों में !


वज़ह कुछ भी हो,

जवाबदेही तुम्हारी है,

हाँ तुम कभी भी,

आ सकती हों मेरे कमरें में,

क्योंकि तुम्हें मैंने,

सबसे ऊपर रखा हैं,

तुम आना कभी फुर्सत में,

और देखना,

किस तरह मैंने,

अपनी एक..

अलग दुनिया बसाई हैं !


थोड़ी देर रुकना मेरे कमरें में,

देखना खाली पड़ी..

बेजान दीवारों को,

उन दीवारों का ख़ालीपन,

अगर तुम भरना चाहों,

तो इज़ाजत मुझे तुम्हारी,

वहाँ तस्वीर लगाने की देना,

वैसे..

मेरे कमरें की,

हर एक चीज़ को,

बख़ूबी छेड़ सकती हों तुम !

बस एक छोटी-सी डायरी हैं,

उसे मेरे जीते जी,

पढ़ना मत कभी,

और अगर पढ़ भी लो,

कभी ग़लती से,

तो बताना मत मुझे,

मेरे जज़्बात जो एक तरफ़ा ही,

उमड़ रहे हैं,

उमड़ते आए हैं,

और उमड़ते रहेंगें,

बंद हैं..उस डायरी में,

कई बार बता चुका हूँ,

अब उम्मीद..कोई नहीं तुमसे,

बच्ची तो हों नहीं तुम,

अपना अच्छा बुरा,

सब बख़ूबी पहचानती हों !


जानता हूँ मैं,

किस तरह तुम अब,

ज़िन्दगी की नई दौड़ में,

शामिल हों चुकी हों,

ये भी जानता हूँ,

की हौसलें बुलन्द रहते हैं तुम्हारे,

मेरा यक़ीन मानो,

ख़ुद से ज्यादा भरोसा,

मुझे तुम्हारे,

हौसलों में नज़र आता हैं,

जानती हों क्यों ?


आख़िर वो हौसलें ही थे,

जिनकी बदौलत,

छोड़ के गई तुम मुझे,

वो हौसलें ही तो हैं,

जो तुम्हें ताक़त देते हैं,

मुझसे दूर रहने की,

अच्छा बस,

अब कुछ नहीं कहना तुमसे,

ना ही आप सबको सुनाना हैं कुछ,

अब बंद करते हैं,

मेरे कमरे की कहानी को,

ठीक मेरी डायरी के,

उन पन्नों की तरह,

जिन्हें पढ़ने की इजाजत,

मेरे जीते जी,

किसी को भी नहीं !!


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