मुफलिसी के मफलर !
मुफलिसी के मफलर !
मुफलिसी के मफलर से गम की ठंडक छुपा ली
हमने ज़िन्दगी कुछ रो के कुछ हँस के बिता ली
ख्वाब जो मुमकिन थे, उन्हें दे पटका सिरहानो पर
जो नामुमकिन थे, उन्ही पे रातें सारी टिका ली।
मुफलिसी के मफलर से गम की ठंडक छुपा ली
हमने ज़िन्दगी कुछ रो के कुछ हँस के बिता ली
उम्मीदों की चादर थी, जहाँ चाही वहां बिछा ली
हौसलों की मिटटी से, कच्ची-पक्की छत बना ली।
झुंझलाहटों के दरारों से जो झांकती हसरतें कभी
सैयंम की उनपे झट से कुण्डी लगा ली ....
मुफलिसी के मफलर से गम की ठंडक छुपा ली
हमने ज़िन्दगी कुछ रो के कुछ हँस के बिता ली।
कुछ अपने जो कातिल थे, उनकी भी खूब सुनी
कलंदरों की तरह, उनसे भी मोह्हबतें जता ली
और जिन्हें अजनबी कहती रही दुनिया शायद
उनमें मैंने सारी कायनात अपनी बसा ली ।
मुफलिसी के मफलर से गम की ठंडक छुपा ली
हमने ज़िन्दगी कुछ रो के कुछ हस के बिता ली।