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Ashutosh Singh

Others

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Ashutosh Singh

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मैं रोज़ लड़ रहा हूँ, मैं रोज़ बढ़ रहा हूँ

मैं रोज़ लड़ रहा हूँ, मैं रोज़ बढ़ रहा हूँ

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सब सपनो को संजो केअश्रुओं से पोस के 
नित नऐ अरमान मैं पिरो रहा हूँ

मैं रोज़ लड़ रहा हूँ मैं रोज़ बढ़ रहा हूँ 

 

चुनौतियाँ समेट के कपाट पे कुरेद के
इन जलती हुई राहों में
मैं रोज़ बढ़ रहा हूँ, मैं रोज़ लड़ रहा हूँ 

 

हर आरजू  मरोड़ के, कुछ संगी साथी छोड़ के 
बुझे-बुझे इन स्वप्नों को थोडा 
झकझोर के 
मैं रोज़ डट रहा हूँ, मैं रोज़ बढ़ रहा हूँ 

 

हैं राह ये विकट तो क्या, लाख इसमें संकट तो क्या 
हैं हौसले बुलंद तो फिर, पीर के पर्वत तो क्या 
डरा नहीं थमा नहीं, इन पर्वतों को चीर के 
मैं रोज़ बढ़ रहा हूँ, मैं रोज़ लड़ रहा हूँ 


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