रावण जलाऐं !
रावण जलाऐं !
चलो इस बार कुछ अलग तरह से रावण जलाऐं
बाहर से बहुत हुआ, इस बार आग अन्दर लगाऐं !
सच कहे एक अरसा हुआ,आओ आज झूठ झुठलाऐं
नज़र बहुत फेरी अपनों से,आज उन्हें भी गले लगाऐं
वध करे अपने अहंकार का,प्रेम को अपना आधार बनाऐं
क्रोध हो बस अपने स्वार्थ से, यथार्थ को अपने अपनाऐं !
प्रतिरोध की अग्नि से जगे प्रतिशोध को आग लगाऐं
सहनशीलता और मर्यादा दो नैनों में अपने बसाऐं
हर मैली लालच अपनी,संतोष के लोभ से रोज हराऐं
रावण हमसे प्रतिदिन हारे,राम को जब अपने भीतर जगाऐं !!
चलो इस बार कुछ अलग तरह से रावण जलाऐं
बाहर से बहुत हुआ, इस बार आग अन्दर लगायें !!