इश्क़ का मंज़र
इश्क़ का मंज़र
है इश्क़ ज़िन्दगी का वो मंज़र
लग जाता है चैन-ओ- सुकून दांव पर ।।
किसी को चाहना
बन जाता है इक सज़ा
मिलता है दर्द ऐसा
जैसे किया हो कोई गुनाह ।।
कोई पास आ कर इतना
बड़ी दूर चला जाता है
गवाँ कर दिल अपना
कोई बहुत अकेला रह जाता है ।।
दिल के छालों को
कोई किसको दिखाए
मलहम लगाने वाला ही
दिल के ज़ख्म कुरेद जाता है ।।
चाहे जी भर कर कर लो इश्क़
किसने तुम्हें रोका है
सम्भल कर रखना कदम
इस राह में पग पग पर धोखा है ।।
बड़ी बंदिशें हैं बड़ी ठोकरें हैं
इस इश्क़ की राह में
लुट जाता है सब कुछ
एक महबूब की चाह में ।।
