इश्क़ जैसा भी हो
इश्क़ जैसा भी हो
तुम मशहूर हो रहे हो
अपने ही आप में
लोग पहचानते हैं तुमको
अब इस तरह शहर में
कोई बता दे तुमको
ग़र अपने दिल की बात
समझ लेना एक और गिर गया
अब इश्क़ की राह में
दिल उसी पर आता है
जिसके लिए चूर होता है
अक़्सर नज़दीकियां वहीँ
गहरी होती है जहाँ
दिल मज़बूर होता है
टूटता वही शज़र है
तूफ़ान के आने पर
जिसको अपने आप पर
बड़ा गुरुर होता है
राह कैसी भी हो
वक़्त कैसा भी हो
लोग कैसे भी हो
इश्क़ जैसा भी हो
आप हर हाल में
आप ही रहोगे
फिर क्यों
कहते हो
सबसे
इश्क़ का अलग
दस्तूर होता है
तुम भी जानते हो
मुझे भी खबर है
ये साथ हमारा तुम्हारा
नज़र भर नज़र है
जो उम्र गुज़र रही है
वो तो एक फ़ानी है
न इश्क़ का दुनियां में
कहीं कोई सानी है
एक लम्हा मुझे दे दो
मुझे वही चाहिए तुमसे
क्यों सोचते हो तुम
उमरभर के मंसूबो के बारे में
जो मुमकिन नहीं था
जब तुमने उसको मुमकिन कर दिया
एक राह भटके मुसाफ़िर को तुमने
इश्क़ की राह पर कर दिया
अब क्यों रोकते हो
उसके क़दमो के निशान को
बढ़ जाने दो उनको
बढे वो जिस दिशा को
ग़र आते है वो तुम तक
तो क़िस्मत तुम्हारी
और जाते है तुमसे तो
कमनसीबी हमारी जो
होना है हो जाने दो
बिखरने दो इश्क़ के नूर को
पहचान लो खुद को
जिसे पहचान लिया है इश्क़ ने
दुनियां का क्या है
वो कब रही किसी के बस में
मेरा गुनाह यही है
एक दिल रखता हुँ
और उसके झरोखे में
एक तस्वीर तुम्हारी भी रखता हुँ
तुम दुआ करो ग़र बचना है
तुम्हे इस इश्क़ से
मेरा दिल ही न रहे
तुम बसी हो जिसमें.....
तब तो मुमकिन तुम्हे भूल पाना
मेरे लिए
जब मैं खुद न रहूँगा अपना
तो क्या करूँगा तुम्हारे लिए
आओ मैं अहद करता हुँ
इस दिल दौलत की कसम
तुम एक बार तो करदो
इस दिल पर ज़रा करम
फिर देखो इश्क़ तुम्हे
किस तरह आबाद करता है
ये खुदाया कर्म है
जो अपने नूर की बारिश में
हर तरफ दमकता है...
अब तुम भी उसी नूर का
एक ज़र्रा हो रहे हो
ये समझ लो
इश्क़ की फ़रमाइश हो रहे हो
इश्क़ की फ़रमाइश हो रहे हो....