दोनों ओर प्रेम पलता है
दोनों ओर प्रेम पलता है
दोनों ओर प्रेम पलता है।
सखि, पतंग भी जलता है !
दीपक भी जलता है।
शीश हिलाकर दीपक कहता -
“बंधु, वृथा ही तू क्यों दहता ?'
पर पतंग पड़कर ही रहता ! कितनी विह्नलता है !
दोनों ओर प्रेम पलता है।
बचकर हाय ! पतंग मरे क्या?
प्रणय छोड़कर प्राण धरे क्या ?
जले नहीं तो मरा करे क्या?
क्या यह असफलता दोनों ओर प्रेम पलता है।