इश्क
इश्क
कुछ रुका सा है कुछ फैला हुआ है
ये इश्क़ तेरा हर दवा-सा है
जो रूह में उतर गयीं है अदायगी तेरी
अब हर पहर तेरा नशा सा है
कुछ यूँ हुआ है आगमन मेरे जीवन में उसका
की अब दिल हमेशा जवाँ जवाँ-सा है
ऐसे सँवरती है वो अब हर पहर
जैसे हर मौसम सावन-सा है
मुस्कुराहट तो ऐसे जैसे हर क़र्ज़ उतारा है।

