इश्क के एहसास
इश्क के एहसास


मैं पत्तों पर यूँ उसका नाम लिखती रही,
पतझड़, बारिश, बसंत हर दिन मौसम सी,
उसके रंग में ढलती रही।
एक झोंका हवा का ऐसा आया,
वो टहनियां ही ले गया साथ अपने,
और में मीट कर भी टहनियों से लिपटी रही।
जैसे मर कर भी रूह काया से,
रुखसत होने की आरजू रखती है।