डरती हूँ लेकिन कमजोर नहीं
डरती हूँ लेकिन कमजोर नहीं
डरती हूँ मैं,
हाँ डरती हूँ मैं,
डरती हूँ लेकिन कमज़ोर नहीं।
डरती हूँ क्योंकि एक माँ हूँ,
ममता के भावों से ओतप्रोत हूँ,
डर है मुझे कहीं कोई कमी न रह जाये,
मेरी परवरिश में।
डरती हूँ कहीं अपने ख्वाबों को सजाने,
कहीं तुझे संवारना न भूल जाऊं।
डरती हूँ अपनी उड़ाने भरने से पहले,
सोचती हूँ एक बार चलूँ तुम्हारे संग,
चाँद कहानियों में चाँद को छू आऊँ।
भले ही तुम नासमझ हो,
वक्त की कीमत से बेखबर हो,
फिर भी भागती हूँ संग तुम्हारे,
छुपाकर ख़याल अपने ताकी,
तुम माँ में सहेली पा सको,
बचपन को अपने यादगार बना सको।
दिन भर की दौड़ धूप से जब कुछ पल ,
जब तुम सो जाती हो,
फिर जब ख़यालों की पोटली ,
कुछ ख्वाब लिए झट से खुल जाती है।
वो डर की लहर एक और ख़ौफ़ ले आती है।
सूरज की रोशनी जब खिड़की से छटने लगती है,
घड़ी की टिक टिक संध्या के सन्नाटे में,
जैसे फिर से कुछ याद दिलाती है।
एक ख्वाब किसी की आँखों में देखा था बुनते,
मौन था लेकिन तस्वीर थी मेरी।
वो ख्वाब हकीकत में गढ़ने,
गिरती, पड़ती, सम्हलती हूँ।
फूँक फूँक कर कदम राह पर धरती हूँ।
तुम स्वांस हो मेरी तो वो,
धड़कन है, उम्मीद है जिन्दगी की।
दोनों ही जरूरतें जिन्दगी हो ।
दोनों ही चलती रहे,
दोनों की सम्हाल में न हो कोई कमी,
बस इसीलिए दिन रात दुआएं करती हूँ।
हाँ डरती हूँ लेकिन कमजोर नहीं
ये तो मेरी मोहब्बत है जो,
हर बार बेहतरीन कर पाऊँ तुम्हारे लिए,
बस ख़यालों में इस ख़ौफ़ से ,
खुद को बार बार रूबरू करती हूँ।
हाँ डरती हूँ लेकिन कमजोर नहीं,
माँ हूँ ना इसलिए अपने पंखों को फैलाने से डरती हूँ।
