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इश्क इबादत

इश्क इबादत

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एक खयाल उनका बंदगी से कम नहीं 

क्या रुख़ करें मस्जिद का 

जब दिल के दरबार में बसा वो खुदा बनके..


चाहत की बारिश है नेमतें बरसा रही

इबादत में क्या मांगे

महफ़िल ए मोहब्बत के शहंशाह हम है..


रुख़सार ए जमाल से रोशन है जहाँ 

नूर ए खुदा से कामिल क्या करें 

आबाद हो जब इश्क से मेरे दिल का जहाँ..

 

पूछेगा रब कयामत के दिन बंदगी का हिसाब 

कह देंगे अगर इश्क है इबादत तो की है हमने वो बेहिसाब..।


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