इंतज़ार
इंतज़ार
तुझे तकती रहीं मेरी ऑंखें
मुमकिन था ज़िन्दगी से
बेज़ार हो जाना
इश्क था।
और मालूम था तेरी
बेवफाई का पैमाना
फिर भी तो इश्क था
और तेरा खुद ही
में मशगूल रहना
वक्त बदलेगा कभी।
तब मुमकिन है तेरा
इश्क को समझ पाना
फ़िलहाल तो इंतज़ार है
और इंतज़ार की सोच में
शामिल सिर्फ तुम
जो सबकी चाहत
रखते हम भी
तब आज़ाद
होते तुम भी
मेरे ख्यालों से,
मेरी वफाओं से
मेरी नज़रों से और
यूँ मेरी आदत न बनते तुम।

