इन्साँन
इन्साँन
आज फिर हुई एक रात मायुस
के जीने की चाह छुट गयी
सिसकियो मे बेह गयी हसी सारी
आज जिंदगी फिर रूठ गयी
एक बैचेनी खा रही मुझे
एक समय मुझे मिटा रहा
इस बद्सलूकी को देख कर
मेरा सब्र तूटता जा रहा
मेरा कारवाँ ना मेरा है
मे बस चलता जा रहा
भटकी हुई इस्स भीड मे
मेरा अक्स मुझे जला रहा
मे प्यासा बनकर दर दर भटका
के सुकुँन मिले पानी से कही
ना सुकून मिला ना प्यास बुझी
क्युकी वो प्यास पानी की थी ही नही
घुट घुट कर रोता रहा जुनून मेरा
जबान होकर अल्फाज ना केह सका
उस बेगुनाह का गुनाह बस इतना था
के सपनो के बिन ना रेह सका
एक सास थामकर आबाद कर दिया
बेरेहेम होकर पलभर मे यूँ
तो जिल्लते सेहने के लिये
ए जिंदगी, तू उम्रभर मिली ही क्यूँ
ना गुलशन मे खिला तेरे
ना चमकता सितारा बना
उसुलो की राह पर चलनेवाला
बस एक आवारा बना
मुझे फिर ना बनना चाँद तेरा
ना फिर मेरा जुनून जगा
ना अक्स दे ना जिस्म दे
ना फिर मुझे इन्साँन बना
चल पडा हू दर पर खुदा के
फिर दिल मे बस दुहाई है
जाते जाते इस दुनिया से
एक छोटी आस लगायी है
लाखो बद्दूवाओ का सरताज मिला
पर कोई तो अच्छाई होगी
मेरे कफन पर टपकते आसुओं में
थोड़ी तो सच्चाई होगी
थोड़ी तो सच्चाई होगी।