इंसान की फ़ितरत है
इंसान की फ़ितरत है
इंसान की फ़ितरत है,
कभी तो उसका रंग बदल जाता ,
कभी बात करने का ढंग बदल जाता,
जीवन में आगे बढ़ने की लालसा है,
अपनी फितरत छोड़ अंदाज बदल जाता,
लगता कुछ अपना सा जब भी,
मिलो तो वो इंसान बदल जाता,
बदलने की फितरत जिसकी है,
वो जरूरत पर बदल जाता,
कोई प्रतीक्षा में उसकी बैठा रहा कब से,
पर उसका तो वक्त बदल जाता,
भावना का पत्थर तो पारस होता है,
जो छूने से मन को सोना कर देता है,
पर जो इंसान पत्थर हो जाए,
उसका रंग बदल जाता,
जिस तरह बिजली की चकाचौंध में,
दीये और लालटेन की क्या कीमत,
इस धीमी रोशनी में इंसान बदल जाता,
यथार्थवाद ने छायावाद के रूप को बिगाड़ दिया,
इसी तरह इंसान की फितरत में,
उसका विश्वास बदल जाता,
रोशनी के पीछे छाया भी होती है,
उस मात्र से प्रकाश के चाह में वो उलझ जाता,
इंसान की फ़ितरत है..
कभी तो उसका रंग बदल जाता,
कभी बात करने का ढंग बदल जाता I
