इकतरफा मोहब्बत
इकतरफा मोहब्बत
चुपके चुपके दिल की नगरिया में आन बसे साजन
अरी मैं बाबरी प्रीत की मारी
हार गयी तन मन
हर इक साँस पुकारे मेरी अब बस नाम तुम्हारा
बिना लगाये कोई आवाज दिल ने दिल को पुकारा
रूह में मेरी इस हद तक अब समा हो चुके तुम
कौन सी खिड़की खुली थी रूह तक आ पहुँचे जो तुम
यही अंदाज तुम्हारा मुझको बहुत लुभाता है
तेरे सिवा अब तो मेरा न किसी से नाता है
बेपरवाह सा दिल था मेरा सौंप दिया जो तुझको
जनम जनम को हुआ ये तेरा तू ही सम्हाले इसको
तू भी तो कुछ बोल यह चुप्पी कैसी लगी है ?
अब यह चुप्पी मुझको घायल करने लगी है
क्या जो आग है इधर, उधर भी वही लगी है ?
या इकतरफा मोहब्बत मुझे जलाने लगी है ?