रिश्ते रहे या रीझते रहे
रिश्ते रहे या रीझते रहे
एक प्रीतम अपनी प्रेयसी से कह रहा है।
तेरी परछाईं जब गिरी मुझ पर, छांव से सांवला हो गया मैं।
तेरी नज़रों के जो तीर लगे, सीधा सा बावला हो गया मैं।
तेरी और खींचा चला जा रहा हूँ, अपने आप को भुलाकर
तेरी मुस्कान देखकर तेरे भीगे अधरों में बावला हो गया मैं।
तेरी हुस्न की जो बला है, जिसने मेरे दिल को छला है।
ज्यों रोम रोम तेरा सबाब से, रसास्वादन में ढला है।
मैं कायल हो रहा था और, या अब घायल हो रहा हूँ
भूलकर जैसे कोई प्रीत प्रीतम की और बढ़ चला हैं।
ये रिश्ता मैं नहीं जानता, शायद इसे निभाना कहते है।
तेरी हर सांस में कैद हूँ, इसीलिए मुझे दीवाना कहते है।
जला गई तू मुझे ज्वालामुखी बनकर अब बौछार से
पानी की क्या होगा, जब इसे मौत से फ़साना कहते है
मैं हर रिश्ता निभाउंगा क्योंकि, तेरे साथ जीना जो चाहता हूँ
छोड़ना नहीं जिंदगी भर के लिए तेरा हाथ थामना चाहता हूँ।
मत छोड़ मुझे यूँ आवारा , पागल बनकर भटकूँगा अक्सर
मैं तो पागल भी तेरी इश्क़ की मजार में जीना चाहता हूँ।