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Dayasagar Dharua

Abstract

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Dayasagar Dharua

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इकलौता राही हूँ

इकलौता राही हूँ

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वो सारी रुकावटें

जो मेरी जिंदगी मे बारी बारी आयीं

अलग अलग अंदाजों मे

मुझे मेरी संकल्प से हटाने की चाह मे

कभी कपटी पेट को

भूख का लालच देने की कोशिश की

तो कभी मतलबी आँखों को

मुश्किलों से जूझने के वजाय

चापलूसीपूर्ण सरल मार्गों का प्यास

मगर हर बार मैं अटल था


जब उससे भी काम न बना

तब मेरे विपरीत पेश किये गये

तरह तरह की वेदनाएँ यातनाएँ

रूह तक कँपा देने वाली विपदाएँ

कुछ दुख . . ,

जिनसे पीढ़ी दर पीढ़ी से

भली भाँति परिचित था

वे भी हजारों रूप दिखलाये

वहीं दर्द भी

अपनी मौजूदगी जाहिर करने

उन हजारों दुखों के साथ

उस वेदनाओं,

यातनाओं और विपदाओं की

लम्बी कतार मे चुपचाप

मेरे खिलाफ़ षड़यंत्र रचता हुआ

मुझे मेरी अटलता से

टालने की कोशिश कर रहा था


न भूख न प्यास

न ही दुख और न ही वो दर्द 

कुछ भी

मेरी दृढता को तोड़ न सका

मैने जो संकल्प ले रखा है

उसे नकारा बहोत

पर नकारात्मक कर न सका


मैं अभी भी

उस नकारा गया पथ का

इक लौता राही हूँ

मेरे साथ मेरा संकल्प है

जो अजर है

जो अमर है

इसी संकल्प के साथ

यहीं से निकले जो भीड़ थे

उसी झुंड की तलाश मे हूँ

बस तभी तक

इक लौता राही हूँ

इक लौता राही हूँ


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