इक ख़त: तुम्हारे लिए
इक ख़त: तुम्हारे लिए
1 min
205
सोचती हूँ मैं
कभी कभी
इक ख़त लिखूं तुम्हें
लिख दूँ
कि दिल ये फिर
ज़िद पे अड़ा है
हो के फरियादी
तुम्हारे दर पे
खड़ा है
लिख दूँ
कि फिर एक बार चाहिए
थोड़ा या ज्यादा
तुम्हारा प्यार चाहिए
या लिखूं कि
अनंत अंबर में
चाँद तन्हा बहुत है
तुम जो भर लो
बांहों में तो
जीने को
वो एक लम्हा बहुत है
या लिखूं मैं
दिल की दुश्वारियां सारी
खत कर दूँ
बेचैनियां बेताबियां
बेकरारियां सारी
इस आग के दरिया में
मुझे डूब जाना है
मुझे अब 'मैं 'नहीं रहना
मुझे बस
तुम हो जाना है
तुम में ही
गुम हो जाना है
मुझे बस
तुम हो जाना है ।