ईश्वर हूँ मैं, क्या नाम मेरा ?
ईश्वर हूँ मैं, क्या नाम मेरा ?
ईश्वर हूँ मैं, क्या नाम मेरा ?
ये तुम मुझको बतलाते हो, कभी राम के नाम से करते जाप
तो कभी अल्लाह कहकर बुलाते हो....
मेरे नाम पे करते दंगे, और करते मुझको बदनाम हो,
मेरे नाम से मरते हो और कहते उसको जिहाद हो....
चोट लगे जो तुमको तो क्यों गलती मेरी बतलाते हो,
गुनाह करके खुद ही गुनहगार मुझे ठहराते हो....
जीवन दिया है मैंने तुमको, तुम मुझको क्या दे पाओगे....
धन, दौलत तो तुमने बनाई, क्या उससे मुझको खरीद पाओगे.....
जाती, धर्म, धन, दौलत ये सब मैंने कहा बनाये थे,
मैंने तो केवल इंसान बनाया, ना मंदिर, मस्जिद बनाये थे....
मैं ईश्वर हूँ, क्या नाम मेरे ?
क्या मैंने तुम्हें बताये थे.......
तुम जन्म मुझी से पाते हो, फिर लौट मुझी में आते हो....
और अहंकार के वश में आकर तुम मुझे बांटना चाहते हो......
धर्म तुम्हारे, कर्म तुम्हारे, तुम जातियों में बट जाते हो....
धरती बाटी अम्बर बाटा, क्या अब मुझे बांटना चाहते हो.....
ईश्वर हूँ मैं, क्या नाम मेरा ?
ये तुम ही मुझे बतलाते हो....
खुद को तो तुम बांट चुके, क्या अब मुझे बांटना चाहते हो ?
