ईश्क की अमीरात
ईश्क की अमीरात
ईश्क के मयखाने को मैने,
आरमानों से सज़ाया है।
आज़ा सनम मयखाने में,
ईश्क की महफ़िल ज़माई है।
बेकरारी से इन्तज़ार है तेरा,
महफ़िल में रंग ज़माना है।
ज़ल्दी आज़ा मेरी सनम तु,
रात अभी भी बाकी है।
तेरे यौवन की अंगड़ाई मुझे ,
ज़ाम की प्याली लगती है।
उस ज़ाम को पीकर मुझको,
मदहोश बनकर झूमना है।
नज़र शराबी है तेरी सनम,
नशे में नशा मिलाना है।
नशे में भान भूलकर तेरे,
हुश्न को महसूस करना है।
तोड़ के आज़ा रस्में दुनिया की,
दुनिया वालों को ज़लाना है।
ईश्क की अमीरात में "मुरली"
तुझे माशुका बनाना है।