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Sangeeta Ashok Kothari

Classics

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Sangeeta Ashok Kothari

Classics

ईर्ष्या

ईर्ष्या

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ये तेरा ये मेरा ऐसी मानवीय प्रवृति हैं,

हमेशा दूसरे की थाली भरी लगती हैं,

कम लगता ख़ुद के पास कितना भी हैं !


आँखें पराई चीज में नज़र गढ़ाये रहती हैं,

तांक-झाँक,तुलना,ईर्ष्या आदत बन गयी हैं।।


ईर्ष्यावश रिश्तों में आपसी दरार आ जाती हैं,

मैं,मेरा और सिर्फ मेरे लिए ऐसी उनकी ज़िन्दगी हैं,

औरों की तरक्की फूटी आँख सुहाती नहीं हैं, 


कभी कुकृत्य कर रिश्तों को मटियामेट करती हैं,

ईर्ष्या परिवार को बर्बादी की कगार पर खड़ा करती हैं।


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