इधर उधर
इधर उधर
खामोशियाँ इधर भी हैं,
शायद उधर भी,
क्योंकि नज़रे मिलती हैं,
कभी-कभी इधर और उधर की।
मीठा डर है,
कि शुरुआत कैसे करें शब्दों की,
थोड़ी चहक इधर भी है,
शायद उधर भी।
नज़रों से बात,
शुरू हो गई है शायद,
कुछ देर तक तो मिले,
नज़रें इधर और उधर की।
दोस्तों को बता दिया है,
मैनें उनके बारे में,
उनकी कोई दोस्त,
नहीं शायद यहाँ पर।
खामोश बैठा देख अकेला तुम्हें,
अच्छा नहीं लगता है मुझे
देखते हैं कब तक चलती है,
ये कहानी ऐसे हीं,
इधर और उधर की ।।