नामुमकिन हो तुम
नामुमकिन हो तुम
शब्दों की मायाजाल हो, तुम्हें रिझाऊँ कैसे
गणित की कठिन प्रश्न हो, तुम्हें सुलझाऊँ कैसे
तर्क विद्या का दर्शन हो, अपनी छाप छोड़ जाऊँ कैसे
विज्ञान की कल्पना हो,तुम्हें वास्तविकता बनाऊँ कैसे
प्रकृति का द्रव्यमान हो, तुम्हारा मापन करूँ कैसे
गुणधर्म की रासायनिक अम्ल हो, तुम्हें छार बनाऊँ कैसे
इतनी चंचला हो, तुम में जड़ता लाऊँ कैसे
आध्यात्म का रहस्य हो, तुम्हारे हृदय का प्रवेश द्वार पाऊँ कैसे
दरअसल तुम नामुमकिन हो, तुम्हें अपना बनाऊँ कैसे।

