हज़ारों रास्ते सफर के
हज़ारों रास्ते सफर के
हज़ारों रास्ते सफर के,
अभी एक चुन,
दूजा मौका भी आएगा,
नदिया हो या समंदर,
साहिलों से ही होते चिपके,
इक टूटी तो क्या,
दूजी नौका पाएगा।
ऐसे में कुछ हाथ लगे न लगे,
तज़ुर्बे से हाथ भिगायेगा,
वही हौसला दहक-दहक के तुझे,
सारी रात जगायेगा,
तभी...जाकर इक पौधा,
दरख़त बन पायेगा,
बच्चा शाहीं का जैसे,
परों को आजमाएगा,
बनकर कली से फूल,
भौरों से आँख मिलाएगा,
पहुँच के मंज़िल पर,
मंज़िल से पहले,
मंज़िल हाथ लगाएगा।
तू धैर्य बना, स्थैर्य बना,
दूजा मौका भी आएगा,
हज़ारों रास्ते सफर के,
कोई तो पास बुलायेगा,
चादर फैला बहियन की,
तुझ को जो गले लगाएगा,
अन्त्य सफर के लम्हों में,
वही संग तेरे मुस्कायेगा।
हज़ारों रास्ते सफर के,
अभी एक चुन,
दूजा मौका भी आएगा।