हुकूमत तुम्हारी
हुकूमत तुम्हारी


बसी जो दिल में सूरत तुम्हारी
बनी क्या खूबसूरत मूरत तुम्हारी
भूलने की बात करते हो पर क्यो
अब भी मुझको जरूरत तुम्हारी
आसान होता मैं तुम्हें भूल जाता
भुला नहीं कभी मैं नसीहत तुम्हारी
कहो जो करूंगा गैर दिल न दूँगा
लिखा नाम दिल वसीयत तुम्हारी
था मैं गुलाम और गुलाम ही रहूँगा
कबूल है मुझको हुकूमत तुम्हारी
जिधर भी चलेगा संग मैं भी रहूँगा
मर मिटा मैं हँसी दिलकश तुम्हारी