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Deepali Mathane

Tragedy

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Deepali Mathane

Tragedy

हसरतें

हसरतें

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ख़ामोश से ज़ज्बातों को किताबों में ढूँढ लेते हैं।

थक जाए पलकें तो बस आँखें मूँद लेते हैं।


हाथों पे हाथ रख के कुछ अहस़ास गुनगुनातें हैं।

रूठे हुए जज़्बातोंको अपनें ना जानें हम कैसे मनातें हैं?


वक्त़के हाथों मज़बूर जीवन का पह़ीया चल रहा हैं।

हाथों की लकीरों से सुकून का वो पल जा रहा हैं।


ये ख़ामोशी ये दर्द का आल़़म यू ही तन्हा हो रहा हैं।

किताबों में बयाँ हर लफ्जं ना जाने क्यूँ रो रहा हैं।


अंतर्मन के संघर्षो में अजीबसी हलचल शामिल हैं।

हसरतों की चाहतों का ना जाने कौन कात़िल हैं ?


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