हसरतें....
हसरतें....
हसरतों को दफ़न किया था चाहतों की क़ब्र में,
मिले तुम तो उचक-उचक ताकँ -झाँक करने लगी।
सूखी सिली पड़ी थी मन की कोठरी के किसी कोने में,
जो मिले तुम तो फिर से ठिठक -ठिठक सुलगने लगी।
बेचैन बेक़ाबू मंज़र आखों में फिर जगने लगे,
कपकपातें सूखे होंठों की तपन दिल में ठिठुरने लगी।
आरजुओं के नश्तर रह रह कर दिल में चुभने लगे,
सिहरन लिबास की तेरे होले से मुझमें घुलने लगी।
सुर्ख ख़्वाबों के दरीचे फिर मुझमे सजने -सँवरने लगे
मिले तुम तो हसरतों की शमा़ पुरज़ोर जलने लगी।

